दरअसल पूंजीवादी व्यवस्था में बाज़ार आपके सोचने की प्रक्रिया को अपने सांचे में ढालने और आपके चॉइस को प्रभावित करने के लिए करोड़ों डालर खर्च करता है। मुक्त बाज़ार के समर्थन में चलाए जा रहे अभियानों में अंतहीन निवेश किया जा रहा है।क्योंकि जैसा मार्क्स ने कहा था कि " पूंजीवादी लोगों के लिए सिर्फ माल ही नहीं पैदा करता बल्कि अपने माल के लिए लोग भी पैदा करता है"।
आज भारत 2.5 लाख करोड़ रुपये के मार्केट के साथ अमेरिका, चीन, जापान के बाद दुनिया का चौथा बड़ा सौंदर्य बाजार बन गया है। दुनिया भर में सौंदर्य प्रसाधन के सभी टॉप ब्रांड यूनिलीवर, प्रॉक्टर एंड गैंबल और लॉरिअल भारत में बेहद सफल हो रहे हैं। केवल विदेशी ब्रांड ही नहीं देसी ऑर्गेनिक ब्रांडों की भी धूम कम नहीं है। पर इस तरह सुन्दर दिखने के लिए पूरी दुनिया में खर्च किये जा रहे लाखों करोड़, बदले में मिलती है निराशा। अभी कुछ दिन पहले की बात है शादी में अपनी मुस्कान और हंसी को बेहतर दिखाने की कोशिश के चलते स्माइल डिजाइनिंग सर्जरी कराने पहुंचे हैदराबाद के एक युवक की डेथ हो गई। इसके पूर्व शादी में सुन्दर दिखने की कोशिश में दिल्ली के एक युवक की हेयर ट्रांसप्लांट के बाद डेथ हो गई थी।
कंपनियों के मकड़जाल से अंजान विज्ञापन देखकर ग्लैमर दिखने की चाहत में युवक, युवतियां सौंदर्य प्रसाधन यूज करके अपने नेचरल ब्यूटी को खराब कर रहे हैं।
अयोध्या से राम जब दूल्हा बनकर मिथिला में प्रवेश करते हैं, राम के सुंदर रूप को देखकर मिथिला की लड़कियां सिहाती हैं, मन ही मन शिव-पार्वती का ध्यान धरती हैं कि उन्हें भी ऐसा ही पति मिले। श्रीराम की सुंदरता का उल्लेख करता हुआ रामचरितमानस का यह दोहा देखिए -
"केकि कंठ दुति स्यामल अंगा।
तड़ित बिनिंदक बसन सुरंगा।।"
यानी, राम मोर के कंठ जितने श्यामले रंग के हैं, उनके श्यामले बदन पर पीला कपड़ा ऐसे शोभायमान है कि बिजली की चमक भी खुद को कमतर महसूस करें।
क्या सुंदरता का कोई पैमाना है, इतिहास इस पर क्या कहता है?
"कौन सुंदर है और कौन नहीं, किसे अपनी सुंदरता बढ़ाने के लिए सर्जरी या किसी ट्रीटमेंट के जरूरत है और कौन नेचुरल ब्यूटी है" यह तय कैसे होता है? क्या सुंदरता का कोई निश्चित पैमाना है या यह देखने वालों की आंखों में बसती है। दुनिया की अलग-अलग संस्कृतियों पर नजर फेरें तो 'सुंदरता' का भ्रम पल भर में चकनाचूर हो सकता है।
हमारे यहां युवक सिक्स पैक एब्स तो युवतियां जीरो फीगर को 'हॉट' मानते हैं, जबकि मिडिल ईस्ट के कुछ देशों में महिलाओं की सुंदरता उनके मोटापे से मापी जाती है। विक्टोरियाई ब्रिटेन में महिलाएं 14 इंच का कमर बनाने के लिए खुद को कॉर्सेट में कसकर बांध लेती थीं।
बालों को काला रखने के लिए हम तमाम उपाय करते हैं जबकि दुनिया जीतने निकला भूरे बाल वाला हिटलर काले बाल वालों को खराब नस्ल का मानता था।
जो फीचर्स किसी जगह के लिए 'सुंदरता' का पैमाना हो सकता है, वह दूसरी जगह कथित रूप से 'बदसूरती' का कारण भी बन सकता है।
एंथ्रोपॉलोजिस्ट के अनुसार - स्वस्थ होना ही असली सुंदरता बाकी भ्रम।
इंसानों के अलावा किसी और जानवर या पशु-पक्षी में 'सुंदरता' का कॉन्सेप्ट नहीं है। लेकिन सामाजिक रुतबा और मेटिंग के लिए साथी चुनने के कुछ पैमाने जानवरों और पशु-पक्षियों में भी होते हैं।
इनका पैमाना सिंपल है। जो स्वस्थ है, वही सुंदर माना जाएगा। उसे ही मेटिंग और बच्चे पैदा करने, वंश बढ़ाने के लिए चुना जाएगा।
एंथ्रोपॉलोजिस्ट गीतिका शर्मा बताती हैं- 'मौजूदा वक्त में सुंदरता के जितने भी पैमाने हैं, सब ब्यूटी, फैशन और कल्चरल इंडस्ट्री के शिगूफे हैं। अलग-अलग संस्कृति में अलग-अलग पैमाने बने। कहीं पतली होने के लिए कहा गया तो कहीं मोटी। कहीं बाल बड़े करने के लिए कहा गया तो कहीं छोटे, कहीं नीली आंखें खूबसूरत कही गईं तो कहीं भूरी या काली।' लेकिन शारीरिक विज्ञान और एंथ्रोपॉलोजी की नजर में स्वस्थ होना ही सुंदर होना है। बाहरी सुंदरता का यही एकमात्र पैमाना है।
वास्कोडिगामा काला होता तो हमारे यहां बिकती 'ब्लैक क्रीम'?
'सुंदरता' मार्केट और सुपरमेसी का फैलाया भ्रम है। लेकिन यह भ्रम फैला कैसे। क्या आपने कभी सोचा है कि श्यामल रंग की शोभा पर महाग्रंथ रचने वाले देश में 'गोरा बनाने' की क्रीम क्यों और कैसे बिकने लगी..
दरअसल, इसका कारण यह है कि हमने यह मान लिया या हमें मानने के लिए मजबूर किया गया कि गोरे लोग हमसे सुपीरियर हैं। क्योंकि हम उनके गुलाम रहे।
कल्पना करिए कि वास्कोडिगामा काले होते या हम अफ्रीकियों के गुलाम बने होते तो आज अपने यहां काला बनाने की क्रीम बिकती। क्योंकि हमारे मन में काले लोगों के बेहतर होने का भाव होता।
डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा था -
सौंदर्य की परख की यह विकृति राजनैतिक प्रभाव के कारण आई है। गोरी चमड़ी के यूरोपियन लोग सारी दुनिया पर तीन सदियों से हावी रहे हैं। अधिकांश भागों को उन्होंने जीता और वहाँ अपना शासन कायम किया। वैसे भी उनके पास शक्ति और समृद्धि रही जो रंगीन जातियों के पास नहीं रही। अगर अफ्रीका की नीग्रो जाति ने गोरे यूरोपियनों की तरह दुनिया पर शासन किया होता तो स्त्रियों की सुंदरता की कसौटी निश्चय ही अलग होती। कवियों और निबंधकारों ने नीग्रो त्वचा की मुलायम चिकनाहट तथा उसके आनंददायक स्पर्श एवं दर्शन का वर्णन किया होता; उनकी सौंदर्य-कल्पना में खूबसूरत होंठ या सीधी नाक पूर्णता की विशेषताएँ होतीं। सौंदर्यशास्त्र राजनीति से प्रभावित होता है; शक्ति सुंदर दिखाई देती है विशेषकर गैरबराबर शक्ति"।
हम और आप जैसे हैं, अच्छे हैं। यह बात दिलासा दिलाने की नहीं, बल्कि वास्तविकता है। अगर आप स्वस्थ हैं तो आप सुंदर हैं। प्रकृति ने हम सबको खूब सोच-समझ कर बनाया है, इस शरीर को सुंदर बनाए रखने के लिए हेल्दी फूड, वर्कआउट और मन को खुशियों की जरूरत है, न कि किसी ब्यूटी ट्रीटमेंट, क्रीम या सर्जरी की।
(शब्द 970)
---------------
We must explain to you how all seds this mistakens idea off denouncing pleasures and praising pain was born and I will give you a completed accounts..
Contact Us